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गुरुदेव सियाग सिद्धयोग को अपनाएँ एवं अपना व अपने प्रियजनों का जीवन सफल बनाएँ बाल मनुहार GSSY
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ध्यान की विधि :

सर्वप्रथम आरामदायक स्थिति में किसी भी दिशा की ओर मुँह करके बैठ जाएँ. यदि आप बैठ पाने में असमर्थ हैं तो आप ये ध्यान लेटकर भी कर सकते हैं. इसके बाद समर्थ सदगुरुदेव श्री रामलाल जी सियाग और बाबा श्री गंगाईनाथ के चित्र को कुछ देर तक खुली आँखों से देखते हुए अपनी समस्त समस्याओं के समाधान एवं आपको 15 मिनट तक ध्यान में बिठाने के लिए अंतर्मन से करूण प्रार्थना करें।

अब आँखे बंद करके गुरुदेव के चित्र को आज्ञाचक्र पर (जहाँ तिलक या बिंदी लगाते हैं) देखने की कल्पना कीजिये। और फिर मन ही मन (बिना होंठ-जीभ हिलाये) गुरुदेव द्वारा दिए गए 'संजीवनी मन्त्र' का लगातार मानसिक जाप आरम्भ कर दीजिये।

ध्यान के दौरान यदि किसी भी यौगिक क्रिया जैसेकि आसन, बन्ध, मुद्रा, प्राणायाम, कम्पन अपने आप होने लगे तो घबराये नहीं, और न ही इन्हें रोकने का प्रयास करें। ये सभी यौगिक क्रियाएँ जागृत मातृशक्ति कुण्डलिनी स्वयं अपने नियंत्रण में आपके त्रिविध ताप शांत करने के लिए करवाती है। ध्यान की अवस्था में दिव्य प्रकाश, दिव्य गन्ध, दिव्य रस, दिव्य ध्वनि (नाद) तथा अनिश्चित काल का भूत, भविष्य दिखाई दे सकता है। ये सभी दिव्य अनुभूतियाँ भी आपके भीतर जागृत कुण्डलिनी द्वारा ही अनुभव करवाई जाती हैं। ध्यान की अवधि पूर्ण होते ही आप सामान्य अवस्था में लौट आयेंगे।

ध्यान दिन में केवल दो बार ही करें, इससे अधिक करने के लिए हमारा भौतिक शरीर समर्थ नहीं होता है। ध्यान ठोस आहार लेने के बाद न करें, ऐसा करने पर या तो ध्यान लगेगा नहीं, और लगेगा भी तो उल्टी हो सकती है. इस लिहाज़ से नियमित सुबह-शाम खाली पेट ध्यान करना ही बेहतर रहेगा।

संजीवनी मन्त्र का ‘मानस जाप’ आप जितनी अधिक बार करेंगे, उतना ही उत्तम रहेगा. नहीं तो दिन में कम से कम छ: सात बार कुछ मिनट के लिए जरूर जप लें।

गुरु सियाग योग मानव मात्र के लिए है और इसे सभी जाति, धर्म, समुदाय, वर्ग, आयु के लोग कर सकते हैं।

कुण्डलिनी क्या है ?

कुण्डलिनी शक्ति हर इंसान में जन्म से ही विद्यमान एक दिव्य ऊर्जा है जो हमारे मूलाधार चक्र में साढ़े तीन आंटे लगाकर (कुण्डलित/spiral) सुषुप्त अवस्था में रहती है। किसी भी समर्थ सद्गुरुदेव द्वारा दिए गए दिव्य मन्त्र के मानसिक जाप और ध्यान करने से यह जागृत होकर ऊपर की ओर उठती (ऊर्ध्वगमन करती) है और छः चक्रों को भेदन करते हुई सहस्रार में परम सत्ता में लय हो जाती है। इससे व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति जीवित रहते हुए ही हो जाती है। सहस्रार तक पहुँचने की प्रक्रिया में कुण्डलिनी शक्ति साधक को अपने अधीन स्वत: योग (automatic Yoga) करवाती हुई चलती है, क्योंकि समाधि की अवस्था तक पहुँचने के लिए शरीर का निरोगी होना अनिवार्य है। स्वतः संचालित योग आज भी वैज्ञानिकों के लिए शोध का विषय है!

सिद्धयोग के लाभ:

1. समस्त प्रकार के साध्य व असाध्य शारीरिक रोग व संक्रमण व विकृतियाँ जैसे एड्स, कैंसर, हेपेटाइटिस, लकवा, गठिया, रक्तचाप, टीबी, डायबिटीज (मधुमेह), हीमोफिलिया, अस्थमा, चर्म रोग, आदि से मुक्ति संभव।

2. समस्त प्रकार के मानसिक रोग व मानसिक समस्याएं जैसे मानसिक तनाव, पागलपन, गुस्सा, चिंता, फ़िकर, चिड़चिड़ापन, उन्माद, भय (फोबिया), निराशा, अवसाद (डिप्रेशन) व अनिद्रा आदि से मुक्ति संभव।

3. समस्त प्रकार की लतों व नशों जैसे अफ़ीम, सिगरेटे, पान, भाँग, गाँजा, स्मैक, चरस, हेरोइन, शराब, बीड़ी, तम्बाकू आदि से सहज में बिना परेशानी छुटकारा संभव।

4. नियमित ध्यान व संजीवनी मंत्र के जप से विद्यार्थियों की एकाग्रता, स्मरण शक्ति, आत्मविश्वास व सकारात्मक वृत्ति में अद्भुत रूप से वृद्धि होती है साथ ही उनके व्यक्तित्व का विकास व विद्यार्थियों में छिपी हुई छमताएँ उभरकर सामने आती हैं।

5. सभी प्रकार की दैनिक जीवन से जुड़ी समस्याएं जैसे पारिवारिक, गृहकलेश, नौकरी, शादी, शिक्षा, आदि से सम्बंधित समस्याओं से छुटकारा संभव ।

6. सभी प्रकार के आध्यात्मिक रोग व आध्यात्मिक समस्याएं जैसे जादू, टोने, टोटके, भूत, प्रेत, पितर, तांत्रिकों की समस्याओं से पूर्ण रूप से मुक्ति संभव ।

7. ध्यान के दौरान तीसरे नेत्र पर अनिश्चित काल के भूत भविष्य की घटनाओं की प्रत्यक्षानुभूति व आध्यात्मिकता के पूर्ण ज्ञान के साथ वर्तमान जीवन में प्रातिभ ज्ञान द्वारा मार्गदर्शन ।

8. गृहस्त जीवन में रहते हुए "भोग" के साथ "मोक्ष" तथा आध्यात्मिक उन्नति एवं आत्मसाक्षात्कार की सहज में प्राप्ति।


The practice of Guru Siyag Yoga (GSY) involves chanting (mental repetition) of a divine mantra and meditation. Guru Siyag initiates a seeker into GSY as his disciple by giving him/her a mantra — a divine word — to chant silently round-the-clock and also teaches a method of meditation.

The chanting (Jāpa) of the mantra becomes involuntary when it is repeated constantly over a certain period of time. This however depends directly on the degree of intensity, faith and sincerity with which the chanting is done. In some cases the chanting becomes involuntary after just over a week of practice while in some other cases it takes a fortnight or even a few months.

Besides chanting of the mantra, the disciple is also required to meditate for 15 minutes each, two to three times a day.

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