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भूमिका
मैं एक ज़िन्दगी / बंदगी ईमानदारी से और साफ-सुथरी जीना चाहता हूँ। But इस समय इस जीवन में, मैं दागी हो गया। मुझे परिवार से पृथक कर दिया गया। और कानून की लेखनी ने मुझे TRADE MARK CRIMINAL बना दिया। माफ करना तिहाड मुझे।
अपराध वह जिसका दोषी बीमार शरीर है। साथ ही मेरा अन्तर्मन व्यथीत ...है। किन्तु... ''मन चंचल गोड्डे गार में होते हैं"।
लीजिए शुरू
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अचानक सोते से जाग गया, देखा तो पाया अपने-आप- को जेल में पाया। यह 'खोया-पाया' दूर-दर्शन की प्रस्तुति नहीं है। ओर ना ही 'पाया-सूप' वाला 'पाअया'। यह तो थोड़ा-सा हरियाणवी ट्च है, जो प्रभावी हो उठा। वह भी कथा के आरम्भ में। "ये जीवन है इस जीवन का यही है रंगरूप, थोड़ी खुशी है थोड़े हैं गम"! और ये जीवन है। आप लोग सब जानते हैं। कि किस गीत माला से यह उपयुक्त गीत है। मेरे जिज्ञासु मित्रों--आदिगुरुवर शिवाय: का सिमरन करते हुए। ओम नम शिवाय का उच्चारण एवंम पठन करते हैं। लीजिए प्रारम्भ से आगे बढ़ती है यह कथा :-
'सुचि' एक प्यारी लड़की है जो बंगाली बोलने वाली एक संभ्रात खाति यानि बढ़ई परिवार में जन्मी लाडली, पिता ऋषिराज वर्मा जो बैंक में अच्छी नौकरी करते हैं। और बाद में मैनेजर की पोस्ट से रिटायर्ड होते हैं। मदर { माँ } सरकारी स्कूल में कार्यरत हैं। प्रभावशाली और बहुत ही बड़ा परिवार संयुक्त है। बुर्जुग दादा जी व दादी जी अभी जीवित हैं। कुछ याद आया मुझे, लेकिन लिखूँगा नहीं, साॅरी!
अचानक से! उम्र के १५वें बरस में हमारी कहानी की हीरोइन मैट्रिक या १० वीं• क्लास की छात्रा हो गयी है। ठीक है साहब, आप सोच रहे हैं, अचानक यह लेखक कहाँ से कहाँ पहुँच गया। अजी! साब कहानी का छोटा होना ही 'बड़ा होना' है। यह हमारा आपस में काॅरडिनेशन है। ये लघु-कथा गढ़ने का प्रयास है। विस्मय नहीं करें।
तो अंग बदला शरीर में परिवर्तन हुआ तो भंवरे आ गये। इन में So Called सच्चे प्यार वाला और पाक-मुहब्बत का दम भरने वाला 20 वर्षीय युवक प्रतियोगिता यानि आज के संदर्भ से कहें तो LOVE जिहाद में जीत गया। ओर लघुबीज रोपण से 'सु' गर्भ ठहर गया। या यूँ कहें गर्भ ठहरा बैठी अविवाहित सूचि-सुकन्या-सुकुमारी। समस्या का निदान यह निकला या समझें कि निकाला गया कि घर -परिवार-लोक-लाज से ऊपर होकर पापा की लाडो,
She got married that person who is her 'BOYFRIEND' & LOVER and Biological Father of she BABY Child.
यहाँ गर्भ ठहरे १६ साल की यह कन्या जल्द ही मातृत्व सुख को प्राप्त हुईं। परन्तु समस्या यह उत्पन्न हुई कि युवक महाशय घर से अलग होकर बिजनेस करने को तैयार थे। उन्हें अपने परिवार से 'कुछ हाथ नहीं लगा'! सोलह साल की बीवी एक बच्चा और हाथ में कुछ नहीं। अर्थात् ना-काम ना कोई नौकरी आखिर में कथाकार से मदद मांगी, प्रभावी रुप से ₹ २००,००० का प्रबन्ध कर दिया गया। बिजनेस चालू हुआ और तरक्की के पश्चात व्यापार ठप्प। जब तक पैसा आता गया घर खुशहाल बना रहा, "फिर हमारे-कमसीन-लड़की-फंसा कर भटकाने वाले नौजवान डैडी ने पैसों का सद्पयोग प्रारंभ किया"।
शराब-कबाब और शबाब और नशा इत्यादि में हद कर दी ओर आखिर में सब कृत्यों में महारत हांसिल कर ली R इन सभी आचरणों में, और कहानी कीहीरोइनी अपने और बच्चों के साथ हैप्पी थीं। तभी अचानक पति-देव प्रिय के समस्त राज़ खुल गये। ओर तभी अचानक बीमारी ने उसे घेर लिया। फिर संघर्ष शुरू होता है। पाठक-गण को पता है किसका संघर्ष? साथ ही घर से अपने पिता की प्यारी- पिता-माता से किस मुँह से मदद माँगे! और फिर सूत्रधार से मदद लेकर LOVELY पतिदेव या Husband ने पैसा नहीं लौटाया था। तकाजे यानी वापस, लिए गए पैसों को वापस नहीं किया गया। न ही असल और ब्याज तथा सूद मिस्टर हीरो लवर पति ने वापस किया। तनिक रूकते हैं, फिलोस्फी बातें करते हैं।
चूँकि मनुष्य का मन लालची है चाहे आप हों या फिर चाहे हम! 💀 क्यों सच कहा ना? जी हाँ। 'मैं हूँ खलनायक'! डाॅयलोग है बाबू साहब। 💘 पर ले लिया क्या? मेरी बातों को। लालच-लोभ-फरेब, धोखा-विश्वासघात-झूठ आदि-इत्यादि, समाज को जो पुराने समय से विकसीत या बना है। उसे खा जाते हैं। जैसे फसल का कीड़ा पूरी फसल बरबाद कर देता है।
हम कुछ सीमा तक अपने भाग्य के दास हैं।
प्रभु-ईश्वर-अल्लाह अनेक नामों वाले एक-शक्तिशाली Creator अर्थात रचनाकार के दास नहीं है अपितु उनकी संतान हैं। समझ आये तो ठीक। वर्ना इंसान-आदमी या औरत या फिर ओर कुछ जो Creature हैं, वह ईमानदारी से अपनी गल्ती और कामवासना को और अपने कर्मों व पापों को 'ब्रह्माण्ड-पति' पर थोपते हैं। ओर अगर वह हमें बनाने वाला स्वयंम भी आ जाये या उस तक हम पहुँच जायें। तब भी हम उसे ही अपनी गल्तीयों-तथा-दोषों व किये कुकृमों का आरोपी मानते हुए, 'अपनी गठरी उसके सिर' रख देंगे। हैं कि ना।
सच की बात करें तो सत्य तो यही है। हम किसी की परेशानी का पूरा-पूरा फायदा उठा लेते हैं, चाहे पैसे से हो या फिर शोषण करके, एक-दूसरे के यहाँ मुँह-काला कर लेते हैं। जैसे Bollywood Film Industry में काॅस्टिंग काॅऊच होता है, जो पर्दे में होता रहेगा। समाज को समाज के लिए एवं भद्दे समाज और संस्कृति का निर्माता सिद्ध होगा। यह लघुकथा मेरे मन-मस्तिष्क में २६ वर्षों पूर्व से सुप्तज्वालामुखी के समान गरम लावा लिये व्यथित रही है। अब मौका मिला तो मेरे तिहाड के भीतर आज २० दिनों में यह कलम से स्याही रूपी लावा बन शब्दों व कहानी में रचना हो गई। जो शायद ही कभी किसी को पढ़ने को प्राप्त होगी। कहानी में आगे क्या हुआ? जानने की उत्सुकता आप सभी को परेशान करेगी। इसलिए आप स्वयंसेवक बन कर खुद ही कुछ लिख लें। वैसे मैंने तो पूरी कहानी लिख ली है। जो यहाँ पूरी लिख पाना संभव नहीं है। अतः प्रयास करूँगा कि किसी ओर जगह लिख सकूं। प्रयास तो अवश्य करूँगा। तो कृप्या चेक करते रहना। क्या पता फिर से तिहार जल जाना पड़ जाए। जाना तो पडे़गा क्योंकि सिस्टम भेजेगा। केस चल रहें हैं, Section 498A धारा Domestic violence & दहेज उत्पीड़न क्या? अपराधी हूँ मै
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