Mukti Bodh Gyan Yagya *Virah Chitavni ke Ang Ka Sarlath* विरह चितावनि के अंग का सरलार्थ
10 videos • 22 views • by MuktiBodh GyanYagya Bhagyesh मुक्ति बोध ज्ञान यज्ञ ** विरह चितावनि के अंग का सरलार्थ ** बंदी छोड़ सतगुरु रामपालजी भगवान के चरणो में दास भाग्येश और समस्त सत्सेवकों का कोटि कोटि दंडवत परनाम। सभी भाई बहनों सत्सेवकों को दास का प्यार भरा सत साहेब। परम पूज्य पिताजी स्तगुरु रामपालजी भगवान की असीम कृपा से और उनके आशीर्वाद से दास के द्वारा ज्ञान यज्ञ , मुक्ति बोध का पठन किया जा रहा है | परमात्मा सतगुरु रामपालजी भगवान कहते हैं साध संगति हरि भगती बिन, कोई ना उतारे पार। निर्मल आदि अनादि है, गंदा है सब संसार.. * कबीर संगत साधु की, नित प्रति कीजै जाय। दुरमति दूर बहावसी, देसी सुमति बताय॥ * संगत कीजै साधु की, कभी न निष्फल होय। लोहा पारस परसते, सो भी कंचन होय॥ * संगति सों सुख्या ऊपजे, कुसंगति सो दुख होय। कह कबीर तहँ जाइये, साधु संग जहँ होय॥ * कबीरा मन पँछी भया, भये ते बाहर जाय। जो जैसे संगति करै, सो तैसा फल पाय॥ * सज्जन सों सज्जन मिले, होवे दो दो बात। गहदा सो गहदा मिले, खावे दो दो लात॥ * मन दिया कहुँ और ही, तन साधुन के संग। कहैं कबीर कोरी गजी, कैसे लागै रंग॥ * साधु संग गुरु भक्ति अरू, बढ़त बढ़त बढ़ि जाय। ओछी संगत खर शब्द रू, घटत-घटत घटि जाय॥ * साखी शब्द बहुतै सुना, मिटा न मन का दाग। संगति सो सुधरा नहीं, ताका बड़ा अभाग॥ * साधुन के सतसंग से, थर-थर काँपे देह। कबहुँ भाव कुभाव ते, जनि मिटि जाय सनेह॥ * हरि संगत शीतल भया, मिटी मोह की ताप। निशिवासर सुख निधि, लहा अन्न प्रगटा आप॥ * जा सुख को मुनिवर रटैं, सुर नर करैं विलाप। जो सुख सहजै पाईया, सन्तों संगति आप॥ * कबीरा कलह अरु कल्पना, सतसंगति से जाय। दुख बासे भागा फिरै, सुख में रहै समाय॥ * संगत कीजै साधु की, होवे दिन-दिन हेत। साकुट काली कामली, धोते होय न सेत॥ * सन्त सुरसरी गंगा जल, आनि पखारा अंग। मैले से निरमल भये, साधू जन को संग॥ $$ साध (भगत) मिले साढ़े साधी होंदी। कहने का भावार्थ यह ही कि __ जहां परमात्मा के बच्चे परमात्मा, शब्द स्वरूपी राम, सूक्ष्म रूप मुरारी, अचल अभंगी, सत्य पुरुष, अकह पुरुष, अलख पुरुष, अल्लाह, परवर दीगार सतगुरु रामपालजी भगवान की महिमा का गुणगान करते हैं चर्चा करते हैं भोग लगता है वही साध संगति होती है || $$ ## जहां जान की महिमा सुनु ताहा माई गवन करंत। वो तो नगर अमान है जहां मेरे प्यारे साधु संत। ## * एक घड़ी आधी घड़ी, आधी में पुनि आध | कबीर संगत साधु की, कटै कोटि अपराध || बंदी छोड़ पूरं ब्रह्म परमात्मा सतगुरु रामपालजी भगवान की जय *************** मर्यादाएं जो भगत के लिए अति आवश्यक है**************** 1) सुबह उठकर मंगलाचरण करना 2) मंगलाचरण के साथ प्रार्थना 3) प्रार्थना के बाद चरणामृत पीना (घुटने के बाल बैठ कर अति आधीनी भाव से) 4) अस्त अंग से दंडवत प्रणाम करना 5) दंडवत प्रणाम करते समय जो भी मंत्र मिले उसका जप करना 6) तीन तीन की आरती मन वचन कर्म से करना 7) रोज भोग लगा सको तो अवश्य लगाना भोग की छोटी आरती से (जैसा जल राम फल राम मेवा राम आदी जो भी है) 8) सप्ताह में एक बार बड़ी आरती के साथ भोग लगाना 9) महिने में एक बार साध संगति में आना भगत मिलन समारोह (जिसमे सिर्फ परमात्मा की चर्चा की जाए) *****बन्दी छोड़ सतगुरु रामपालजी भगवान की जय ***** पालन करना न करना आपके बुद्धि विवेक और संस्कारो के ऊपर निर्भर करता है, जिसको सतलोक जाना है वो तो पालन कर ही लेगा। Shanka Samadhan book (Maryada ki Book) https://drive.google.com/file/d/1b_0H... WP 7440914911